मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर को बड़े नोटों को बंद कर उनसे भी बड़े नोट को जारी कर अपनी ही उस दलील को झूठा साबित किया है कि बड़े नोटों के कारण कालाधन बढ़ रहा है। नोटबंदी से आम आदमी आर्थिक संकट में है जिसका सीधा असर किसानों, व्यापारियों, मजदूरों तथा उद्योग धंधों पर पड़ रहा है। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्री और दूसरे भाजपा नेता यह कहते नहीं थक रहे कि इससे कालेधन, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और नकली मुद्रा पर स्थायी रोक लगेगी।
कालेधन वालों ने अपने हथकंडों के सहारे लगभग सारा धन उजला कर लिया है। जो थोड़ा बहुत बचा है उससे उनपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला बल्कि नयी करेंसी बैंकों में पर्याप्त मात्रा में न आने से जहां आम आदमी को नोट उपलब्ध नहीं हो रहे वहीं कई स्थानों पर भारी संख्या में कालाधंधा करने वालों के पास नये नोटों की गड्डियां मिलने की खबरे हैं।
गुजरात में एक गायक के ऊपर लोगों द्वारा नये नोटों की बारिश करते हुए टीवी पर दिखाया जा रहा है। कालाधन एकत्र करने वाले फिर से सक्रिय हो रहे हैं तथा बैंकों में आ रही नयी करेंसी उन तक पहुंच कर फिर से काली होने लगी है। यदि सरकार पुराने नोटों के बदले नये नोट दे देती तो यह काला धंधा शुरु नहीं होता। पहले कालेधंधों से आया धन काला होता था अब तो सफेद नोटों को नोटों की कमी के कारण कालेधन में तब्दील किया जा रहा है। बैंकों से भी कमीशनखोरी के समाचार आ रहे हैं। जबकि जरुरतमंद भूखे, प्यासे, ठंड में सिकुड़ते हुए अपने नेक कमाई के पैसों के लिए पूरे दिन लाईन में खड़े होकर भी खाली हाथ घर लौट रहे हैं। ऐसे लोगों को खाने-पीने का सामान तक उधार नहीं मिल रहा।
आतंकवाद पर भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि घटनायें और भयंकर तथा व्यापक हो गयी हैं। हालत यहां तक खराब है कि जो नोट जनता के लिए छापे जा रहे हैं वे आतंकवादियों से बरामद हुए हैं। यानि जनता से पहले नोट आतंकियों के हाथ लग गये। यह क्या हो रहा है? कौन लोग इसमें शामिल हैं? इसी तरह के तत्वों का पता लगाने की कोई तैयारी नहीं बल्कि जनता को बहकाने और मुख्य मसलों से ध्यान बंटाने का काम हो रहा है।
कहा जा रहा है कि नये नोटों के आने से नकली नोटों का धंधा बंद हो जायेगा। खबरें हैं कि बड़ी मात्रा में दो हजार के नकली नोट भी बरामद हुए हैं।
इनके साथ ही भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के भी थोथे तर्क भक्तगण दे रहे हैं। इन भक्तगणों में अधिकांश भ्रष्टाचार के आदी हैं तथा सरकारी नौकर और उनके आश्रमदाता बिना रिश्वत के काम करने को तैयार नहीं। इससे आम आदमी सबसे अधिक त्रस्त है। क्या कोई बता सकेगा कि किस विभाग में नोटबंदी होने के बाद रिश्वतखोरी बंद हुई है? अथवा भविष्य में बंद होने के संकेत भी हैं।
जिन बुराईयों को खत्म करने की दवाई नोटबंदी को कहा जा रहा है, उनमें से एक भी बीमारी कम नहीं होगी बल्कि कई नयी बीमारियां हमने मुफ्त में पैदा कर लीं। दिसंबर के अंत तक देश में यदि नोटबंदी रही जैसाकि स्वयं पीएम कह रहे हैं तो यह निश्चित है कि आम आदमी की आर्थिक कमर पूरी तरह टूट जायेगी। कृषि, व्यापार और उद्योग धंधे चौपट हो जायेंगे। जिसकी भरपायी लंबे समय में भी नहीं हो पायेगी।
सरकार कुछ भी कह रही हो लेकिन समझदार लोगों का मानना है कि मोदी सरकार अपने ढाई साल के कार्यकाल में आर्थिक मामलों में विफल रही है जिससे सरकारी बैंक भारी घाटे में चले गये हैं। उनका भ्रष्टाचार रोकने में विफल सरकार जनता के पैसे के सहारे किसी तरह काम चलाने की कोशिश कर रही है जिसका भंडा फूटने में अधिक समय नहीं रहा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में विफल केन्द्र सरकार ने जबरन घरेलू निवेश के सहारे गाड़ी खींचने का ढंग निकाला है। इससे देश की आर्थिक हालत सुधरने के बजाय खराब होगी।
-जी.एस. चाहल.
भयंकर आर्थिक संकट में फंसी सरकार जनता के पैसे से गाड़ी खींचने को मजबूर
Reviewed by Gajraula Times
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December 05, 2016
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