भले ही चुनाव पूर्व सर्वे कुछ भी कहें लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा कुछ नहीं कहा जा सकता। चुनावों में भले ही लंबा समय शेष न हो फिर भी थोड़ी-थोड़ी देर में बदल रही सियासी स्थिति में संशय के बादल गहराते ही जा रहे हैं। सूबे की सत्ता के शिखर पर मौजूद सपा में मचा घमासान भले ही ऊपर से शांत हो गया हो लेकिन अंदर सुलगती आग टिकट बंटवारे पर भड़क सकती है। पुराने नेता यह समझ गये हैं और फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। यही कारण है कि सपा बिहार जैसे गठबंधन पर गंभीर हो गयी है। कांग्रेस और सपा नेताओं में इस पर मंथन शुरु हो गया है।
भाजपा विरोधी गठबंधन बनने के आसार ने भाजपा को भी नयी नीति बनाने पर विवश कर दिया है। वह भाजपा जो रालोद सुप्रीमो चौ. अजीत सिंह को उनके दल के भाजपा में विलय की शर्त के अलावा साथ लेने को तैयार नहीं थी, इस समय गठबंधन के प्रयास में जुटी है। भाजपा नेता समझ रहे हैं कि यदि रालोद सपा-कांग्रेस गठबंधन में चला गया तो उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 75 सीटों पर भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। उधर बसपा की ओर मुस्लिम मतों का जाने वाला एक भाग भी गठबंधन के पक्ष में आ जायेगा। यदि रालोद को भाजपा साथ लाने में सफल हो जाती है तो वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत बनकर उभरेगी। जिस रालोद को अब तक कोई पूछने वाला नहीं था और लगभग सभी दलों ने उसे अछूत मान लिया था, ताजा राजनैतिक हालात ने उसकी कीमत और महत्व बढ़ा दिया है।
सूबे में सबसे बदतर हाल किसानों के हैं। जबसे केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी है, किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। जिस भरोसे के साथ किसानों ने भाजपा को समर्थन दिया, भाजपा उसपर खरी नहीं उतरी। गन्ना बाहुल्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान अपने को बहुत ठगा महसूस कर रहा है। हरियाणा में भाजपा द्वारा जाटों के खिलाफ जो साजिश की है उसका प्रचार करने यहां अनेक जाट नेता आयेंगे। इस बेल्ट के किसान खासकर जाट फिर से रालोद के साथ खड़े हुए हैं। ऐसे में चौ. अजीत सिंह के भाव बढ़ना स्वाभाविक हैं।
कांग्रेस के चुनाव विशेषज्ञ पीके भी लाख कोशिश के बावजूद कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ी नहीं कर पाये और नीतीश कुमार और अजीत सिंह के गठबंधन को विशाल रुप देने के लिए सपा से संपर्क करने में जुट गये हैं। एक ओर सपा की आपसी फूट इधर कांग्रेस की कमजोरी तथा अस्तित्व बचाये रखने की जद्दोजहद में फंसा रालोद और भाजपा के नये-नये पैतरों ने इन दलों को एक मंच पर आने को मजबूर कर दिया है। उधर बसपा के दलित-मुस्लिम गठजोड़ के नारे ने भी सपा की नींद हराम कर दी है। इसके विपरीत यदि भाजपा विरोधी गठजोड़ सफल हो गया तो बसपा का यह प्रयास पूरी तरह धराशायी हो जायेगा।
कांग्रेस सपा और रालोद तीनों ही दलों की मजबूत घुसपैठ राज्य के पिछड़ों, किसानों और अल्पसंख्यकों में है। अलग-अलग चुनाव लड़ने से यह वोट विभाजित होकर रह जाते जबकि इन मतों के तीनों दावेदार जब एकजुट हो जायेंगे तो यही मत सबसे बड़ी ताकत में तब्दील हो जायेंगे। इस थ्योरी के तहत एक नये गठजोड़ का प्रयास चल रहा है। पल-पल में घट रही राष्ट्रीय, राजकीय और सामाजिक घटनाओं से चुनावी हालात भी प्रभावित हो रहे हैं। चुनाव अप्रैल से पहले होने नामुमकिन लग रहे हैं। इतने कालांश में पता नहीं क्या-क्या स्थितियां करवट लेती हैं? कहा नहीं जा सकता।
कुछ भी हो लेकिन सूबे में बढ़ रही बेरोजगारों की फौज, इसी तरह बढ़ रहे अपराध, किसानों, मजदूरों और निजि कारोबार करने वाले लोगों की समस्याओं तथा सरकारी दफ्तरों में बढ़ते भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने का प्रयास करने के बजाय सभी दल कुर्सी हथियाने के हथकंडों में जी जान से जुट गये हैं।
-जी.एस. चाहल.
हर पल बदल रही यूपी की सियासी तस्वीर
Reviewed by Gajraula Times
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November 07, 2016
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