भाजपा-बसपा से डरे दल साझा मोर्चे की तैयारी में

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सपा भी बिहार की तर्ज पर लोहियावादी और चरण सिंह वादी दलों के गठबंधन की बात करने लगी है जबकि कांग्रेस भी भाजपा के खिलाफ इन दलों के साथ एक महागठबंधन की सोच रहीहै.

उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के कुनबे में मचे सत्ता संग्राम से जहां सपा नेताओं में चिंता है, वहीं विपक्षी दलों में भी बदलते राजनैतिक हालात पर मंथन शुरु हो गया है। वैसे अभी सपा का संकट समाप्त नहीं हुआ बल्कि संकट और बढ़ने के स्पष्ट संकेत हैं। इस समय जो विस्फोट हुआ है, उसकी कुलबुलाहट यादव कुनबे में लंबे समय से थी। इसे सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां ने स्पष्ट भी कर दिया है। उन्होंने कहा है कि जो अब हुआ है उसकी उम्मीद उन्हें तथा पार्टी के पुराने नेताओं को काफी समय से थी।

यह जो हुआ है वह केवल सपा के बीच हुआ है। जिसका सबसे बड़ा झटका यादव परिवार को लगा है जिसका खामियाजा भुगतने को पूरी पार्टी को तैयार रहना चाहिए। इसी के साथ इस घटना का प्रभाव उत्तर प्रदेश की राजनीति और आगामी विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। इसे लेकर सभी दलों में आगामी स्थिति पर मंथन शुरु हो गया है। सपा जहां अपने बिखराव और मजबूती बरकरार रखने को हाथ-पैर मार रही है, वहीं बसपा, कांग्रेस और भाजपा तथा रालोद अपने-अपने दलों पर इसके प्रभाव का आकलन करने में जुट गये हैं। सबसे अधिक माथापच्ची मुस्लिम वोटों को लेकर हो रही है जो कुल मतों का पांचवां भाग हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों में इनकी तादाद 40 फीसदी से भी ज्यादा है। राजनीति की गहरी समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि सपा संकट से यह वोट बसपा की ओर जाने की संभावना है। दलित-मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने का बसपा पहले ही प्रयास कर रही थी।

ताजा घटनाक्रम को देखते हुए सपा भी बिहार की तर्ज पर लोहियावादी और चरण सिंह वादी दलों के गठबंधन की बात करने लगी है जबकि कांग्रेस भी भाजपा के खिलाफ इन दलों के साथ एक महागठबंधन की सोच रही है। सपा और कांग्रेस ताजा हालात में भाजपा विरोधी महागठबंधन को जरुरी मानने को तैयार लगते हैं। ये समझ रहे हैं कि असली लड़ाई अब भाजपा और बसपा में है। सपा में उभरी सत्ता की लड़ाई ने उसके पुराने और नये नेताओं में इतना मतभेद पैदा कर दिया है कि टिकट बंटवारे में दोनों गुट आमने-सामने अपने-अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं। जिससे दूसरे के बजाय उनके अपनों से हारने के हालात बन जायेंगे। ऐसे में सपा अपने आप साफ हो जायेगी। इस संकट से निपटने का अब एक ही रास्ता है कि भाजपा विरोधी मोरचा तैयार किया जाये। जिसमें पहले ही तैयारी कर रहे जदयू, रालोद तथा कांग्रेस को भी जोड़ा जाना जरुरी है। सपा आपसी विवाद सतह पर आने से पूर्व एकला चलो की राह पर थी, कांग्रेस भी ऐसा ही कर रही थी। बसपा किसी से गठबंधन न पहले करना चाहती और न ताजा हालात में। रालोद कई बार साथी ढूंढ चुका लेकिन भाजपा, सपा, बसपा या कांग्रेस कोई भी उसे साथ लेने को तैयार नहीं हुआ। जदयू तथा कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर नीतीश कुमार और अजीत सिंह ने जिस मोर्चे को अस्तित्व दिया अब सपा और कांग्रेस भी उसके साथ आने को तैयार हैं। भाजपा के बढ़ते प्रभाव और बसपा के साथ मुस्लिम मतों के जाने के खतरे ने उन दलों को एक साथ लाने के हालात पैदा कर दिये हैं जो दल चार दिन पहले एक दूसरे के खिलाफ मैदान में ताल ठोक रहे थे।

देश के सबसे अधिक आबादी के इस सूबे में कई बार जल्दी-जल्दी उतार चढ़ाव हुए हैं। पंचायत चुनावों में जहां सपा बढ़त पर रही जबकि बसपा भी उससे कमतर नहीं आंकी जा सकती। वहीं भाजपा और कांग्रेस इन चुनावों में दोनों दलों से पीछे रहे। रालोद का लोकसभा चुनाव से बेहतर प्रदर्शन रहा। विधानसभा चुनावों की आहट के आरंभ में बसपा बढ़त पर थी। सपा और भाजपा उससे पीछे दिख रही थी। हाल ही में भाजपा की पाक नीति पर बदलाव से उसका ग्राफ बढ़ता बताया गया। जबकि सपा में यादव युद्ध ने सारे कयासों पर ब्रेक लगाकर सभी आकलनों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। इसके उत्तर ढूंढने के लिए सभी दल मंथन में जुट गये हैं। यह कहना कि सूबे का चुनावी ऊंट कौनसी करवट लेगा, जल्दबाजी होगा।

जिस महागठबंधन की तैयारी है और उसपर मंथन चल रहा है, उसकी राह में भी बहुत से रोड़े हैं। सबसे बड़ी बाधा गठबंधन के नेतृत्व को लेकर आयेगी जबकि चुनाव से ठीक पहले टिकट बंटवारा उससे भी बड़ी समस्या है। सत्ताधारी सपा अपनी विजयी सीटें किसी भी हालत में छोड़ने को तैयार नहीं होगा। कांग्रेस, रालोद तथा जदयू भी अधिक से अधिक सीटें चाहेंगे। रालोद और जदयू भले ही मान भी जायें लेकिन असली टकराव सपा और कांग्रेस में होगा। ये दोनों ही उत्तर प्रदेश में अपनी-अपनी सत्ता चाहते हैं। एक मजेदार बात यह भी है कि जदयू के साथ कुछ छोटे दलों का रालोद के नेतृत्व में बना मोरचा जयंत चौधरी को उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुका।

भले ही मजबूरी में सपा, कांग्रेस, रालोद और जदयू आदि दल एक मंच पर आने पर विचार कर रहे हों, लेकिन इन सभी के साथ कई ऐसी मजबूरियां भी हैं जो इनकी एकता में बाधा भी हैं। ऐसे में जिस गठबंधन की सोची जा रही है उसकी राह बहुत आसान भी नहीं।

-जी.एस. चाहल.


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भाजपा-बसपा से डरे दल साझा मोर्चे की तैयारी में भाजपा-बसपा से डरे दल साझा मोर्चे की तैयारी में Reviewed by Gajraula Times on November 02, 2016 Rating: 5
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