नौकरशाही के शिकंजे में पंचायतीराज

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धांधली की शिकायत के बाद भ्रष्ट अधिकारी, प्रधान संग लीपापोती कर मामले को निपटा देते हैं.

उत्तर प्रदेश में गांधी जी का ग्राम स्वराज नौकरशाही के शिकंजे में है। नाम को तो ग्राम सभा या ग्राम पंचायत हमारे गांव की संसद हैं। उसके नियम, कानून, दायित्व अधिकार अपने कार्यक्षेत्र में देश की संसदीय प्रणाली की तर्ज पर सुनिश्चित किये गये हैं। ग्राम प्रधान गांव की सरकार का मुखिया होता है। ग्राम पंचायत के सदस्य संसद के सदस्यों की तरह उसमें साझीदार होते हैं। नियमानुसार कोई भी प्रस्ताव बिना उनके बहुमत के पारित नहीं हो सकता। सवाल यह है कि क्या पंचायतीराज, नियमावली का पालन किया जाता है? क्या पंचायत सदस्यों की सहमति से पंचायत का काम चलता है? दोनों सवालों के जबाव अधिकांश पंचायतों में नकारात्मक हैं। यही कारण है कि पंचायत सदस्यों का चुनाव औपचारिकता मात्र रह गया है। हालत यहां तक खराब है कि बहुत सी पंचायतों में लोग सदस्य बनने को ही तैयार नहीं। अकेले अमरोहा जनपद के 21 गांवों की पंचायतों का इसलिए गठन नहीं हो सका कि लोग सदस्य बनने को ही वहां तैयार नहीं हैं।

हकीकत यह है कि चुनाव के बाद पंचायतों में सदस्यों की प्रधान जरुरत ही नहीं समझते। आर्थिक मामलों में उनके फर्जी हस्ताक्षर या फर्जी अंगूठा चिन्ह लगाकर प्रस्ताव पारित कर लिये जाते हैं। संबंधित ग्राम पंचायत सचिव/ग्राम विकास अधिकारी और सहायक विकास अधिकारी, सब कुछ जानते हुए अपनी संस्तुति प्रदान कर देते हैं। विकास कार्यों में आवंटित और खर्च किये गये धन के मामलों में प्रायः यही प्रक्रिया अपनायी जाती है। शिकायतकर्ता जब कभी बीडीओ, एसडीएम या डीएम तक जाते भी हैं तो ग्राम प्रधान की कथित धांधली की जांच डीएम से एसडीएम, फिर बीडीओ या उसी एडीओ तक जा पहुंच पाती है, जो इस प्रकरण के प्रमुख सूत्रधार और प्रधान के सलाहकार की तरह काम करने वाले कर्मचारी होते हैं। इस तरह की जांच सिवाय लीपापोती के कुछ नहीं होती, यह सभी जानते हैं। ऐसे में भ्रष्ट प्रधान और उनके सहयोगी भ्रष्ट कर्मचारी मिलकर ग्राम स्वराज की समय-समय पर हत्या करते रहते हैं। ऐसे में ग्रामसभा सदस्य की भला क्या औकात या क्या जरुरत है?

-जी.एस.चाहल.


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नौकरशाही के शिकंजे में पंचायतीराज  नौकरशाही के शिकंजे में पंचायतीराज Reviewed by Gajraula Times on October 03, 2016 Rating: 5
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