देश के सबसे बड़े सियासी कुनबे में सत्ता पर वर्चस्व की लड़ाई निकट भविष्य में उग्र रुप धारण करेगी। सपा सुप्रीमो और इस कुनबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने भले ही सत्ता के इस संघर्ष को शांत कर दिया हो लेकिन जो हालात हैं, वे नेता जी के काबू से बाहर होने के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। यादव परिवार का कुर्सी युद्ध तीन गुटों में बंट चुका है और मुलायम सिंह फिलहाल किसी भी गुट में नहीं हैं। यह अलग बात है कि कानूनी तौर पर वे पार्टी सुप्रीमो हैं।
सपा और मुलायम सिंह के लिए सबसे कठिन समस्या यह खड़ी हो गयी है कि विधानसभा उम्मीदवारों के चयन में पार्टी में कलह को कैसे रोका जायेगा? अखिलेश यादव, नेजा जी के वारिस के रुप में अब अपना नियंत्रण चाहते हैं। वे साढ़े चार साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल में अपना एक अलग राजनीतिक गठबंधन बनाने में सफल रहे हैं। वे पार्टी पर स्वयं का पूरा नियंत्रण चाहते हैं। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष का पद छिनने से वे बेहद खफा हैं। उन्हें जंच गया है कि टिकट वितरण में उनका उतना दखल नहीं चलेगा, जितना वे चाहते हैं। उनकी मंशा थी उन्हें इस काम में पूरा अधिकार मिलना चाहिए था। जिसमें शिवपाल क्या नेता जी का भी दखल न हो।
प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल के बनने से अखिलेश की आशायें धूमिल हो गयीं। शिवपाल ऐसे में अपने विश्वसनीय लोगों को अधिक से अधिक टिकट दिलाना चाहेंगे ताकि चुनाव बाद, वे सपा में मजबूत रहें। उधर रामगोपाल यादव अपने भांजे को निकाले जाने से खफा हैं। रामगोपाल को शिवपाल अब अधिक मजबूत नहीं होने देना चाहेंगे। ऐसे में टिकट वितरण के दौरान मुलायम सिंह यादव के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी होने जा रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि वे कुशल राजनेता की तरह इस समस्या के समाधान को सभी हथकंडे अपनाने का प्रयास करेंगे। फिर भी सपा की मुसीबत यह है कि मामला उस स्तर तक जा पहुंचा जहां समाधान उतना आसान भी नहीं, जितना नेता जी सोच रहे होंगे।
प्रो. रामगोपाल जाहिर तौर पर अखिलेश यादव के पाले में लगते हैं लेकिन जिस प्रकार अपने भांजे और पुत्र के समर्थन में उन्होंने दिल्ली से सैफई तक मार्च किया, उससे लगता है यह तीसरा गुट बन गया है।
यदि इस गुट को नकार भी दिया जाये, फिर भी शिवपाल और अखिलेश में टिकट वितरण पर रस्साकशी होना जरुरी है। दोनों में से कोई भी अब पीछे हटने वाला नहीं। इसमें नेता जी की भी सुनवाई पर संदेह है। अध्यक्ष पद शिवपाल को दिया जाने तथा नेता जी के बीच में पड़ने के बावजूद अखिलेश का शिवपाल से लोक निर्माण मंत्रालय छीनना और शिवपाल का कई एमएलसी को पार्टी से निकालना, सिद्ध करता है कि दोनों में से नेता जी की कोई भी मानने को पूरी तरह तैयार नहीं।
शिवपाल, मुलायम सिंह के वारिस बनने के लिए शुरु से उनके साथ मिलकर संघर्ष करते आ रहे हैं। जबकि अखिलेश उनका पुत्र होने के कारण सपा पर कब्जा चाहते हैं। टिकट वितरण में दोनों में से कोई नहीं चाहेगा कि उसके कम लोगों को टिकट मिलें। इसमें टकराव जरुरी है। ऐसे में कई स्थानों पर दो-दो उम्मीदवार भी खड़े हो जायेंगे। सपा के लिए टिकट वितरण ही सबसे खतरनाक खेल होगा। जिसे रोकना सपा सुप्रीमो के भी बस ही बात नहीं होगी। इसमें उम्मीदवार घोषित होने में देरी भी होगी। ऐसे में सपा की सफलता की कौन उम्मीद करेगा?
-जी.एस. चाहल.
टिकट वितरण में बढ़ेगा सपा का संकट
Reviewed by Gajraula Times
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October 02, 2016
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