उत्तर प्रदेश में सियासी समर शुरु है। सभी दल चुनावी युद्ध जीतने के लिए नये-नये हथियार इस्तेमाल करने में जुटे हैं। अभी वाकयुद्ध शुरु हुआ है। जल्द रैलियां और सभाओं का दौर भी तेजी पकड़ेगा। इस बार फिर से अयोध्या के राम बड़ा मुद्दा बनने जा रहे हैं। भाजपा के साथ सपा के अखिलेश यादव को भी राम याद आने लगे हैं। कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव और राम को याद कर रहे उनके बेटे अखिलेश यादव के गुट में ही अभी सामंजस्य नहीं बैठ पाया।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बार उत्तर प्रदेश में त्रिकोणात्मक मुकाबला है। जिसमें भाजपा, बसपा और सपा में बहुत ही कड़ा मुकाबला होगा। यह अनुमान लगाना अभी कठिन है कि इन तीनों में कौन आगे जायेगा। भले ही कांग्रेस फाइट में दिखाई न दे, लेकिन पिछले 27 सालों से गैर कांग्रेसी दलों की सत्ता की कारगुजारियों से समाज के बहुत से लोग असहज हैं। ऐसे में पिछले चुनाव के मुकाबले वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। जिसका प्रभाव किसी भी दल पर पड़ सकता है। ऐसे में वह सत्ता से दूर रहते हुए भी चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेगी। यह भी हो सकता है कि कोई भी अकेला दल स्पष्ट बहुमत हासिल न कर सके।
लोकसभा चुनाव में सभी दलों का सफाया कर भाजपा ने जो रिकार्ड बढ़त बनायी थी उसमें राज्य हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का शिकार हुआ था। जिसमें गैर मुस्लिम एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में आ गये थे। बीस फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में एक भी मुस्लिम सांसद न बन पाना इसी का नतीजा था। इसमें बसपा का परंपरागत दलित मतदाता तथा रालोद के किसान मतदाताओं में भी भाजपा ने मजबूत सेंधमारी की थी।
प्रधानमंत्री द्वारा जय श्रीराम के उद्घोष के साथ चुनावी अभियान शुरु करना ही दर्शाता है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में राम-राग अलाप कर अपनी नैया पार लगायेगी। उनके उद्घोष का गंतव्य समझते हुए भाजपा की भगवा ब्रिगेड भी राम-रंग में रंगने लगी है। इस विषय पर अब तक खामोश केन्द्रीय मंत्री उमा भारती, सांसद साक्षी महाराज, गोरखपुर के सांसद विनय कटियार, आदि राम नाम ही नहीं बल्कि मंदिर निर्माण की आवाज बुलंद करने लगे हैं।
उधर भाजपा नेतृत्व राम-नाम का जाप तो कर रहा है लेकिन राम मंदिर निर्माण पर चुप्पी साध, अयोध्या के विकास के नाम पर रामायण सर्किट निर्माण की घोषणा कर रही है। विहिप नेता और सांसद विनय कटियार इसे बहलाव की संज्ञा दे रहे हैं और मंदिर निर्माण पर जोर दे रहे हैं।
रामायण सर्किट पर 225 करोड़ खर्च करने की केवल घोषणा ही हो रही है। रामभक्तों का कहना है कि केन्द्र में भारी बहुमत से बनी भाजपा सरकार को ढाई साल होने को आये लेकिन मंदिर निर्माण तो दूर उसपर चर्चा तक नहीं हुई। राम मंदिर के बजाय मंदिर स्थल से दूर कहीं रामायण सर्किट की चर्चा करके सरकार लोगों को मंदिर मुद्दे से भटकाने तक ही सीमित है। इसपर भरोसा मुश्किल बल्कि नामुमकिन भी है। भाजपा का दलित और किसान कार्ड भी विफल हो गया है। ऐसे में अब राम नाम का ही सहारा है।
उधर लोकसभा में हार के बाद सपा भी हिन्दूवादी होती जा रही है। उसने विधानसभा चुनाव में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार उतारा और राज्यसभा तथा विधान परिषद में मुस्लिम उम्मीदवारों को भेजने से भी परहेज किया। इसी के साथ मुख्यमंत्री ने अयोध्या में रामलीला संकुल निर्माण शुरु कराकर रामभक्त होने का संदेश दिया है। भले ही कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव का झुकाव अल्पसख्ंयक मतदाताओं की ओर हो, लेकिन अखिलेश उसके बजाय हिन्दुत्व की ओर मुड़े हैं। यादव परिवार में उठापटक का यह भी एक कारण है।
बसपा सुप्रीमो मायावती दलित मतदाताओं को भाजपा की धम्म यात्राओं के प्रभाव से बचाने में सफल रही हैं। उनका अनुमान है कि अयोध्या पर सपा की ताजा नीति से मुस्लिम मतदाता उनकी झोली में आ सकते हैं। वे इसीलिए राम-नाम जपने में लगी भाजपा तथा सपा दोनों पर राम नाम की राजनीति का आरोप लगा रही हैं।
यह तो सभी जानते हैं कि चुनाव में राम-नाम का जाप केवल मतदाताओं को लुभाना मात्र है। मंदिर निर्माण का इरादा किसी दल का नहीं है। कोई भी इस मुद्दे को समाप्त नहीं करना चाहता। भाजपा तो बिल्कुल ही नहीं। फिर भी बड़ा सवाल यही है, पता नहीं राम किसका बेड़ा पार करेंगे?
-जी.एस. चाहल.
मोदी के साथ अखिलेश को भी चुनाव में याद आये राम
Reviewed by Gajraula Times
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October 22, 2016
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