केन्द्र और राज्य सरकारें चुनाव से पूर्व सरकारी नौकरों, ग्राम प्रधानों पर मेहरबान हो गये हैं। तनख्वाह और बोनस बढ़ाकर पहले से भरे पेट और भर दिये गये हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा राज्यपालों को मिल रहीं अथाह सुविधाओं के बावजूद उनका वेतन भी तीन गुना बढ़ाया जा रहा है। ग्राम प्रधानों का मानदेय भी दोगुना कर दिया गया है। मिल मालिकों के सात हजार करोड़ माफ कर दिये हैं। इसके विपरीत किसान तथा दैनिक मजदूर और बेरोजगार युवकों की ओर दोनों सरकारों में से किसी का भी ध्यान नहीं है।
चुनाव से पूर्व किसानों, मजदूरों और बेरोजगारों के अच्छे दिन लाने वाली केन्द्र सरकार और किसान वर्ष मनाने वाली सूबा सरकार इन तीनों वर्गों को बिल्कुल भूल गयी है। सबसे बड़ा वोट बैंक किसानों तथा उससे जुड़े मजदूर वर्ग का है। इन्हीं के बूते सरकारें बनती बिगड़ती रही हैं। लेकिन हर बार चुनाव में किसान ठगा जाता रहा है।
गन्ने की फसल तैयार, क्रेशर और कोल्हू चल पड़े। चीनी मिल भी चलने वाले हैं, लेकिन अभी तक गन्ने के दाम तय नहीं किये गये। किसानों की जेब खाली है। उसका दम निकलने को तैयार है। उसे मजबूरी में सस्ते दामों पर क्रेशरों पर गन्ना डालना पड़ रहा है।
किसान यूनियनें गन्ना भाव बढ़ाने और शीघ्र घोषित करने की मांग कर रही हैं। इसके लिए धरना व प्रदर्शन महीनों से जारी है लेकिन न तो राज्य और न ही केन्द्र सरकार के कान पर जूं रेंगी है। लगता है सरकार इसबार भी गन्ना भाव बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। केन्द्र सरकार गन्ना किसानों को गन्न उगाने से पहले ही हतोत्साहित कर रही है। उसने महाराष्ट्र में गन्ने पर पाबंदी लगा दी। यहां भाजपा की सरकार बनी तो वही होने की उम्मीद है।
गांव, गरीब और किसानों के वोटों पर बनी सरकारें फिर से वोट मांगने वाली हैं। ये वर्ग दोनों को समझ रहे हैं।
-पॉलिटिक्स ब्यूरो.
किसान, मजदूर और गरीबों को भूली, सरकारी नौकरों पर चुनावी मौसम में मेहरबान सरकार
Reviewed by Gajraula Times
on
October 29, 2016
Rating:
