विधानसभा क्षेत्र में बसपा ने अपना उम्मीदवार घोषित कर चुनावी तैयारी शुरु कर दी है। यहां से समाजवादी पार्टी के विधायक अशफाक अली खां भी चुनावी तैयारी में जुटे हैं। भाजपा ने अभी जिले की किसी भी सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया। पिछले चुनाव में चारों सीटों पर सपा ने कब्जा जमाया था। परंतु उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सपा उम्मीदवार को बुरी तरह पराजित कर सारा गणित उलट दिया था। चार में से केवल एक विधानसभा सीट पर सपा आगे रही थी। उसके बाद हुए जिला पंचायत तथा ग्राम पंचायत चुनावों में भले ही सपा अपने लोगों को कुर्सियां दिलाने में सफल रही लेकिन जिले की जनता अच्छी तरह जानती है कि बहुमत तब बसपा के पक्ष में था। बसपा हारी नहीं, बल्कि बड़ी साजिश के तहत हरायी गयी। भाजपा जिला पंचायत और ग्राम पंचायत चुनावों में सपा और बसपा से बहुत पीछे थी। 2012 के विधानसभा चुनावों के बाद से वैसे तो पूरे सूबे में ही जनता का फैसला और चुनावी परिणामों में कई बार बदलाव हुआ लेकिन चारों विधानसभा सीटें सपा को देने वाले जनपद की जनता के मिजाज में बार-बार बदलाव कुछ अलग इशारा करता है।
सन् 2012 के चुनाव में सपा लहर के दौरान जिले की चारों सीटों में नौगांवा सादात ऐसी सीट थी, जिसपर सपा को सबसे कम अंतर से विजय मिली थी। बाद में लोकसभा चुनाव में भी सपा उम्मीदवार यहां से भारी मतों से पिछड़ा था। तभी से माना जा रहा था कि विधानसभा क्षेत्र में सपा की लोकप्रियता गिर रही है। इसके लिए विधायक अशफाक खां की कार्यप्रणाली पर भी उंगलियां उठने लगी थीं।
सपा के ही कई स्थानीय नेता अब कहने लगे हैं कि अशफाक खां के बल पर यह सीट न पहले जीती गयी और न इस बार जीती जा सकती है। ये लोग चाहते हैं कि यहां नये आदमी को मैदान में नहीं लाया गया तो सपा इस सीट से हाथ धो लेगी। पहले यह सीट सपा लहर में स्वतः ही पार्टी को मिल गयी जबकि इस बार उम्मीदवार की लोकप्रियता इसे सपा को दिलाने में सफल होगी। इसके लिए जातिगत पैमाना भी देखना होगा।
सपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता मानते हैं कि जनपद की चारों सीटों पर सैफी समाज के वोट अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों में सबसे अधिक हैं। यह समुदाय पूरी तरह सपा से जुड़ा रहा है। फिर भी जनपद में किसी भी सीट पर सपा ने इस बिरादरी का कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा। इस बिरादरी के लोग सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव तथा प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस बाबत बात चला रहे हैं कि जिले में कम से कम एक सीट सैफी बिरादरी को दी जाये। अमरोहा से सैफी उम्मीदवार को बसपा द्वारा मैदान में उतारने से सपा इस सुझाव पर गंभीर हो गयी है तथा एक सीट सैफी समाज को देने पर मंथन शुरु है।
अब सवाल उठता है कि ऐसा होता है तो जिले की चार सीटों में से सैफी समाज को कौन सी सीट मिल सकती है। मंडी धनौरा एससी/एसटी आरक्षित होने के कारण सैफी को नहीं मिलेगी। हसनपुर से सपा के कद्दावर नेता कमाल अख्तर लड़ रहे हैं। उन्हें स्वेच्छा से लड़ने का हक है। अमरोहा से महबूब अली ने लोकसभा चुनाव में भी सपा उम्मीदवार को भारी बढ़त दिलायी थी। यदि शेष तीन विधानसभा सीटों पर सपा बराबर या मामूली कम भी रह जाती तो लोकसभा की सीट सपा के खाते में होती। सबसे दमदार उम्मीदवार को तो कोई भी पार्टी टोक तक नहीं सकती।
अब बची नौगांवा सादात सीट, यदि सपा सैफी समाज को जिले में प्रतिनिधित्व या सम्मान योग्य मानती है तो यह सीट सैफी समाज को दी जा सकती है। सैफी तबके के अधिकांश लोगों का कहना है कि इससे उन्हें बसपा की ओर खींचने वाले उन लोगों का दबाव भी कम हो जायेगा, जो बहुत से हमारे भाईयों को यह कहकर बसपा से जोड़ रहे हैं कि उन्होंने उम्मीदवारी दे दी और सपा ने आपके वोट लेने के बाद भी आपका ध्यान नहीं रखा। ऐसे लोग यह तर्क भी दे रहे हैं कि पठानों को नाम मात्र के वोटों पर ही उम्मीदवारी मिल गयी।
-टाइम्स न्यूज़ नौगावां सादत (अमरोहा).
लखनऊ से दिल्ली तक भागदौड़ कर रहे कई सपा नेता
Reviewed by Gajraula Times
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August 25, 2016
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