भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की चाल, चरित्र और चेहरों से असंतुष्ट भाजपा नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब में विधानसभा चुनावी मौसम में पार्टी छोड़कर भाजपा को बड़ा झटका दिया। उधर इसी के साथ पंजाब में भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल से असंतुष्ट होकर एक अन्य खिलाड़ी नेता परगट सिंह ने नाता तोड़ कर एनडीए गठबंधन के लिए खतरा खड़ा कर दिया है। सिद्धू की पत्नि ने भी भाजपा को अंगूठा दिखा दिया। सिद्धू दंपत्ति पंजाब में भाजपा के मजबूत स्तंभ रहे हैं। एक साथ तीन बड़े नेताओं के (एनडीए से) नाता तोड़ने से पंजाब की राजनीति में उथलपुथल मचना स्वाभाविक है। इससे सबसे अधिक परेशानी भाजपा और अकाली दल को है। इस प्रकरण के बाद भाजपा को सांप सूंघ गया है जबकि एक-दो अकाली नेताओं ने अपनी खस्ताहाल स्थिति को भांपते हुए मामूली बड़बड़ाने के सिवाय खामोश रहना ही बेहतर समझा है।
जातिगत आंकड़ों के आधार पर देखें तो जाट एक ऐसा समुदाय है जिसने आंख मूंद कर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर भरोसा किया और राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक जहां भी यह समुदाय आबाद है एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया। देश की कोई भी ऐसी बिरादरी या समुदाय नहीं जिसने भाजपा को पूरी तरह समर्थन दिया है। लोकसभा चुनाव में बंगाल, आंध्र, केरल, तमिलनाडू आदि राज्यों में गैर-जाट हिन्दुओं ने पूरी तरह नकारा। विधानसभा चुनाव में दिल्ली, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, केरल, उत्तराखंड और हिमाचल में गैर-जाट हिन्दुओं ने भाजपा को बुरी तरह नकार दिया।
इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही जाट समुदाय के साथ भाजपा सरकार ने उपेक्षित रवैया शुरु कर दिया। मंत्रिमंडल में दूसरों से कम महत्व दिया गया। दूसरे समुदाय के पराजित उम्मीदवारों को भी महत्वपूर्ण पद दिये गये। जाटों को जीतने के बाद भी दोयम स्थान पर रखा गया। सरकारी सेवाओं में आरक्षण को दिलाने के वायदे के बावजूद मिला-मिलाया आरक्षण समाप्त कराने का प्रयास किया जा रहा है। पहली बार ऐसा किया गया कि एक भी जाट मुख्यमंत्री नहीं है। इससे पूर्व राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश तक में जाट मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोकसभा स्पीकर का पद तो कई दशक तक जाटों के पास ही रहा है। हुकम सिंह, गुरदयाल सिंह ढिल्लों और बलराम जाखड़ तक इस पद पर जाट सुशोभित रहे। उत्तर प्रदेश के चुनावों से पूर्व मंत्रिमंडल से इस बिरादरी को और हल्का करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें इस समुदाय से कोई लगाव नहीं।
इस तथ्य का नवजोत सिंह सिद्धू को थोड़ी देर से पता चला और पता चलते ही वे पत्नि सहित भाजपा से निकल भागे। नये भूमि अधिग्रहण बिल का मूल उद्देश्य भी जाट समुदाय की भूमि को निशाना बनाना था। यह तो अच्छा हुआ कि विपक्ष ने एकजुट होकर इसे पारित नहीं होने दिया। भाजपा के अपने (जाटों के) प्रति रवैये को जाट समझ चुके हैं। सिद्धू जैसे कुछ देर से समझने वाले भी हैं जो धीरे-धीरे समझ जायेंगे। पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जाट समुदाय अपनी उपेक्षा का हिसाब चुकता करने को तैयार है।
-जी.एस.चाहल.
भाजपा की चाल, चरित्र और चेहरों को पहचान गये जाट
Reviewed by Gajraula Times
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August 02, 2016
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