इस बार ग्राम विकास की नयी पटकथा तैयार हो गयी है। केन्द्र और राज्य सरकार चुनाव नजदीक जानकर ग्राम विकास के दावों का एक दूसरे से बढ़चढ़ कर प्रचार कर रही हैं। जबकि ग्राम पंचायतों को विकास के नाम पर मिलने वाले धन पर ग्राम स्तर से लेकर जिला स्तर तक के कर्मचारियों की निगाह गढ़ गयी है। इसमें अपना हिस्सा हथियाने के लिए ब्लॉक प्रमुख तथा कई जनप्रतिनिधि भी सक्रिय हो गये हैं। इस बंदरबांट में हिस्सा न मिलने या कम मिलने की वजह से ही आजाद भारत के इतिहास में पहली बार अपनी नयी तथा अजीबोगरीब मांगों के बहाने ब्लॉक कार्यालयों तक पर तालाबंदी कर दी।
कुछ लोग प्रधानों के बिना पूछे ही स्वच्छता अभियान से संबंधित नारे गांवों की दीवारों पर लिखवा रहे हैं तथा प्रति ग्राम सभा तीस हजार का बिल देकर प्रधानों से ग्रामसभा के खाते से उसके भुगतान की मांग भी कर रहे हैं। इसपर सवाल खड़ा करने पर उन्हें किसी विधायक या मंत्री का नाम लेकर दबाव बनाकर वसूली की कोशिश हो रही है। कई प्रधानों ने इस तरह की शिकायतें की हैं। अमरोहा जनपद के विकास खंडों में स्वच्छता के नाम पर एडीओ पंचायत द्वारा प्रधानों को दो फावड़े, तसला और एक झाड़ू थमा कर तीन हजार का बिल दिया जा रहा है। जबकि बाजार में यह सामान तीन से चार सौ रुपयों में उपलब्ध है।
ग्राम प्रधानों को अपने कार्यालय का सामान नियत दुकान से खरीदने तथा मनमना बिल अदा करने का निर्देश बीडीओ और एडीओ दे रहे हैं। प्रधानों का आरोप है कि सामान के वास्तविक मूल्य से बहुत अधिक भुगतान मांगा जा रहा है। जिन कार्यालयों में पहले से मेज, कुर्सी आदि सामान था, उन ग्राम सभाओं में भी पूरा सामान भिजवाया जा रहा है। ग्राम विकास के लिए आये धन की बंदरबांट का यह मामूली नमूना है। इसमें ब्लॉक प्रमुख खाली हाथ हैं तथा अभी ग्राम पंचायतों के गठन का अभी पहला साल है। प्रमुख चाहते हैं कि यदि वे अभी से बंदरबांट से अलग रह गये तो, आगे भी उनके हाथ कुछ नहीं लगने वाला। इसीलिए वे आक्रामक हैं और सुनवाई न होने पर कई तरह की मांगे सरकार से कर रहे हैं। सरकार पर दबाव बनाने को हाल ही में उन्होंने एक दिन के लिए ब्लॉक कार्यालयों पर भी तालाबंदी कर दी। यह और भी दिलचस्प है कि लगभग सभी प्रमुख सत्ताधारी सपा के हैं।
जिले के एक सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) से इस मामले में जानकारी की गयी तो उसने बताया कि ग्राम विकास के लिए काफी धन आया है। इस में रोजगार सेवक, एडीओ पंचायत, बीडीओ, ब्लॉक प्रमुख, जिला विकास अधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी तक की निगाह है। जबकि कई जनप्रतिनिधि भी इस बहती गंगा में हाथ धोना चाहते हैं।
सारा दारोमदार ग्राम विकास अधिकारी और एडीओ पंचायत पर है। यदि मामला पकड़ा गया तो ये दोनों फंसेंगे, जबकि शामिल नीचे से ऊपर तक सभी हैं। शोर शराबा मचने का यह भी एक कारण है। इसी खींचतान में विकास का पूरा पैसा पंचायतों को मिलने में तथा खर्च करने में लंबा समय लग गया।
ब्लॉक प्रमुखों और प्रधानों में खींचतान का एक बड़ा कारण है कि दोनों ने ही इस बार चुनावी खर्च रिकॉर्डतोड़ किया है। कई प्रधानों ने दस से बीस लाख तक खर्च किया है। उधर ब्लॉक प्रमुखों का खर्च भी बेतहाशा हुआ है। चुनावी खर्च को निष्पक्ष चुनाव कराने के बहाने आचार संहिता लागू करने वाले निर्वाचन आयोग ने इस ओर से आंखें मूंद ली थीं या उसका अपनी मशीनरी पर उचित नियंत्रण नहीं था। ग्राम प्रधान और ब्लॉक प्रमुख जल्दी से जल्दी चुनाव खर्च की भरपायी को हाथ पैर मार रहे हैं। यही कारण है कि ग्राम विकास को आये धन को विकास की जगह अपनी जेब में ठूंसने की कोशिश कर रहे हैं। सरकारी कर्मियों तथा अधिकारियों ने भी इसमें सेंधमारी करने के तरीके ढूंढ लिए हैं तथा जनसेवा के निमित्त, प्रदत्त अधिकारियों और शक्तियों को वे जनता के धन को हथियाने में प्रयोग करने में संलग्न हैं। अनावश्यक वाल पेंटिंग, स्वच्छता के बहाने और कार्यालय सामान में मनमानी इनके एकदम नये हथकंडे हैं। पढ़े-लिखे गांव वालों को ग्राम प्रधानों के साथ खड़े होकर विकास को आये धन की निगरानी स्वयं करनी होगी। अन्यथा विकास को आया धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जायेगा।
-जी.एस. चाहल
ग्राम विकास के धन को हड़पने को लामबंद हुआ भ्रष्टतंत्र
Reviewed by Gajraula Times
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August 18, 2016
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