उत्तर प्रदेश में चुनाव से पूर्व कई नेता दल बदल कर इधर से उधर भाग रहे हैं। कुर्सी और अपने स्वार्थ के कारण इस तरह के दल-बदल हमारे देश की राजनीति का अभिन्न अंग हैं। सभी दल इस बीमारी से ग्रस्त हैं। यूपी में बसपा, सपा, भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख दलों में इस तरह की घटनायें चुनाव से ठीक पहले और भी बढ़ती जा रही हैं। लोकतंत्र में किसी भी दल का चयन करना हर किसी को अधिकार है। परंतु लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लचीले रुख का लाभ देश हित या समाज हित के बजाय अधिकांश नेता निजि स्वार्थों के पोषण के निमित्त उठा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। प्रदेश के लोग भारी संख्या में पढ़े-लिखे हैं तथा कम पढ़े हुए लोग भी समझदार हैं। पिछले अनुभवों और ऐसे नेताओं की कार्यशैली से भी अधिकांश लोग परिचित होते हैं। हम सभी को ऐसे मौके पर गैर जिम्मेदार और निज हित के बजाय अच्छे लोगों का चयन कर उनके समर्थन में खड़ा होना चाहिए। जो कहते कुछ थे और कर कुछ और रहे हों, ऐसे नेताओं की जाति, धर्म, संप्रदाय अथवा क्षेत्रीयता को दरकिनार कर विरोध किया जाये तो नेता अपनी कार्यशैली और व्यवहार में भी बदलाव करेंगे।
सभी दल अपनी अलग वैचारिक प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते आ रहे हैं। इस चुनाव में देखना होगा समतामूलक सामाजिक मूल्यों के साथ कौन खड़ा होता है। केवल बोलने वाला नहीं बल्कि जो वह बोलता आया है। वह कर के भी दिखाता है, यह जरुरी है। इसलिए दल के बजाय उम्मीदवार के दिल की पहचान जरुरी है। सुधार तभी हो सकता है, जब दल के बजाय उम्मीदवार के दिल की आवाज पर हम मतदान करें।
-जी.एस. चाहल.
दल नहीं दिल से पहचानें उम्मीदवार को
Reviewed by Gajraula Times
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August 27, 2016
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