सूबे में मानसून आने के बावजूद खेतों में खड़ी फसलों की प्यास नहीं बुझी और धान की रोपाई भी पम्पिंग सैट के सहारे करने को किसान मजबूर हैं। किसान पहले ही आर्थिक मार से पीड़ित था। उसे भीषण गर्मी में प्यासे खेतों की प्यास बुझाने को निजि संसाधनों से सिंचाई करने को मजबूर होना पड़ रहा है। गन्ना मूल्य का भुगतान न होने से उसकी कठिनाईयां बढ़ गयी हैं। बैंकों के कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। यह सूखा बरसाती मौसम काटने को दौड़ता है। कहां जाये किसान और क्या करे?
दूसरी ओर देश की सरकार अपने दो वर्षीय कार्यकाल पूरे होने पर फूली नहीं समा रही। वह इसे विकास पर्व का नाम देकर प्रचार कर करोड़ों रुपये लुटा रही है। प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक के घरों में खुशहाली है तो उन्हें विकास पर्व मनाने में क्या दिक्कत? चाटुकार मीडिया में भी देश तेज आर्थिक रफ्तार पर है। उसे विज्ञापनों के बड़े-बड़े पैकेज जो मिल रहे हैं। उनके घर खुशहाली का आलम शिखर पर है तो भला उन्हें देश तरक्की करता नजर क्यों नहीं आये?
किसानों को आश्वस्त किया जा रहा है कि इस बार मानसूनी बारिश भरपूर होगी। कहा ऐसे जा रहा है, जैसेकि बरसात करने का ठेका भी सरकार के हाथ में हो। जून सूखा गया, जुलाई में भी बूंदाबांदी के अलावा कुछ नहीं हुआ। पूरा उत्तर प्रदेश इस बार वर्षा के इंतजार में है। लोग टकटकी लगाकर आकाश के बादलों को देखते हैं। जो लुकाछिपी का खेल खेलकर थोड़ा बहुत बरसते ही गायब हो जाते हैं। आषाढ़ सूखा गया, सावन भी सावन सा नहीं बरस रहा, यदि भादों ने भी आंखें दिखा दीं, तो किसान का काम खत्म होना तय है।
उधर सरकार अप्रैल मई से ही अच्छी बरसात की भविष्यवाणी कर रही थी। और अच्छे मानसून से जीडीपी बढ़ने की खुशफहमी पाल रही थी। जबकि हमारे देश का मौसम और नेताओं का विश्वास नहीं किया जा सकता। ये दोनों कम से कम यहां तो एक जैसे हैं।
-जी.एस. चाहल.
जनता के बीच भरोसा खो रहे हैं नेता और मौसम
Reviewed by Gajraula Times
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July 10, 2016
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