उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आनंद

anand-sharma

इसमें कोई दो राय नहीं कि आजाद भारत में देश की सत्ता पर सबसे लंबे समय तक जमे रहने वाली कांग्रेस सत्तविहीन होकर निराशा के दौर से गुजर रही है। अगले साल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनावों के साथ पंजाब सहित कुछ और राज्य भी चुनावों का सामना करेंगे। यूपी में क्षेत्रीय पार्टी सपा का कब्जा है। वह फिर से सत्ता को प्रयास कर रही है। केन्द्र में सत्तासीन भाजपा यहां भी सत्ता हासिल करने का हर हथकंडा अपनाना चाहती है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती पांचवी बार यहां की मुख्यमंत्री बनने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं।

भाजपा के बाद देश की दूसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस लगभग तीन दशकों से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। इस बीच वह दूसरे, तीसरे तथा चौथे नंबर तक खिसक चुकी और अपने अस्तित्व के लिए दूसरे दलों की साझीदारी तक को तैयार है। केन्द्र में भाजपा के आने से पूर्व भाजपा के चुनावी सलाहकार, बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस गठबंधन के सत्ता में आने से पूर्व जदयू के चुनाव प्रबंधक बनने वाले महाशय को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रबंधन सौंपकर अच्छा कदम उठाया है लेकिन दशकों से सत्ता से बाहर हुई इस पार्टी के वरिष्ठ तथा तजुर्बेकार नेताओं को कई अन्य बातों पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए था।

चुनावी तैयारी से पूर्व कांग्रेस को राज्य की हवा का रुख भांपना चाहिए. उसी के अनुसार तैयारी जरुरी है. आजकल इस राज्य की कानून व्यवस्था का बहुत बुरा हाल है. जातिवाद, भाई भतीजावाद तथा सत्ताधारी पार्टी में मौजूद कुनबापरस्ती का बेजा प्रभाव ऐसे मामले हैं जिनसे जनता सरकार के बेहद खिलाफ है. भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी चरम पर है. आम आदमी इससे बेहद ग्रस्त है. बेरोजगारी का इलाज किसी के पास नहीं

भाजपा लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के कारण फिर से यहां साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रही है। कैराना से लोगों के पलायन को वह प्रमुख मुद्दा बनाना चाहती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी कह चुके कि सपा को हटाकर भाजपा को नहीं लाया गया तो पूरा सूबा कैराना बन जायेगा। भाजपा के एक भगवा सांसद इसे कश्मीर के वातावरण की संज्ञा दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश धार्मिक रुढिवादियों का राज्य है। यहां के लोग आज भी ब्राह्मणों का सम्मान करते हैं। भले ही चंद उच्च शिक्षित, आधुनिक माने जाने वाले ब्राह्मणवाद का विरोध करते हों लेकिन जन्म से लेकर मौत तक हर खुशी और गम के समय ब्राह्मणों द्वारा स्थापित संस्कारों को ब्राह्मणों से ही संपन्न कराते हैं। माथे पर तिलक और बायें हाथ में लाल रंग के कलेवे को देखकर नतमस्तक होने वालों की कमी नहीं। पूर्वी तथा मध्य प्रदेश में सभी वर्गों में ब्राह्मणों का सत्कार है। यदि कांग्रेस अपने वरिष्ठ सांसद आनंद शर्मा को उत्तर प्रदेश की चुनावी बागडोर सौंप दे और उन्हें भावी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे तो उससे कार्यकर्ताओं का मनोबल तो बढ़ेगा ही, साथ ही सभी वर्गों के लोगों का आकर्षण इस बेहद सजग, राजनीति के विद्वान तथा प्रखर वक्ता की ओर अनायास हो जायेगा।

उत्तर प्रदेश में बेहतर हिंदी का ज्ञाता, धारा प्रवाह सधी आवाज में बोलने वाले नेता को लोग सुनना चाहते हैं। आनंद शर्मा की टक्कर का वक्ता भाजपा या दूसरी किसी भी पार्टी के पास नहीं। उनका व्यक्तित्व भी दूसरे सभी नेताओं से प्रभावशाली है। उनकी भावभंगिमा तथा बोलने का लहजा श्रोताओं पर गंभीर प्रभाव डालता है। शर्मा कांग्रेस की उपलब्धियों को सहज, सरल तथा सुबोध भाषाशैली में  लोगों के सामने रखने में निपुण हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की बोरिंग वाकशैली और अल्पज्ञता तथा अटक-अटक कर बात कहना श्रोताओं को नीरस करता है। वे आनंद शर्मा के साथ मंच पर आयें लेकिन अंत में दो शब्द ही बोलें।

कांग्रेस ने राज्य की बागडोर कमलापति त्रिपाठी, नारायणदत्त तिवारी, हेमवती नन्दन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र आदि कई ब्राह्मणों को जबतक सौंपी, उत्तर प्रदेश पर उसका दबदबा रहा। वीर बहादुर सिंह जैसे मुख्यमंत्री बनने के बाद उसका प्रभाव कम होता गया। आनंद शर्मा की सभायें कराने से कांग्रेस को पता चल जायेगा कि उनका कितना सार्थक परिणाम निकला। गुलाम नवी आजाद भी बेहतर वक्ता हैं। इन दोनों की जोड़ी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा से पैर जमाने में कारगर सिद्ध होगी। उत्तर प्रदेश की मजबूती केन्द्र पर मजबूती का मार्ग है।

-जी.एस. चाहल.

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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आनंद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आनंद Reviewed by Gajraula Times on June 19, 2016 Rating: 5
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