मायावती और स्वामी प्रसाद मौर्य में ठन गयी है। यह अलग बात है कि यह द्वेष अभी अधिक गर्मी भरा रहेगा, बाद में मौसम बदलने के साथ इसमें नरमी आ सकती है। मौर्य फिलहाल कोई ऐसा मौका अपने हाथ से नहीं जाने दे सकते जिसके तहत मायावती पर हमला किया जा सके। वे अभी तक नेता प्रतिपक्ष के रुप में मुलायम सिंह यादव एवं फैमली पर परिवारवाद के आरोप लगाते थे। अब मायावती उनपर परिवारवाद के आरोप लगा रही हैं।
मायावती ने मौर्य के अलग होने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में साफ कह दिया था कि परिवारवाद को मौर्य बढ़ावा देना चाहते थे। इसलिए उन्हें पार्टी पसंद नहीं आ रही थी और वे चले गये।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती के सभी आरोपों को निराधार बताया था. उन्होंने एक बात कही थी, जो अकसर विपक्ष की ओर से चर्चा में रहती थी कि मायावती दलित की नहीं, दौलत की बेटी हैं. वे अंबेडकर के सिद्धांतों को सम्मान नहीं दे रहीं.
खैर जो भी है, स्वामी प्रसाद मौर्य के पास अच्छा अवसर है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का माहौल है। वे उसे आसानी से भुना सकते हैं और अपने लिए अच्छे और बेहतर विकल्प खुले रख सकते हैं। भाजपा की शरण या कांग्रेस का साथ, या अपनी पार्टी, यह वह जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेंगे। मगर यह भी बिल्कुल नहीं कि वे बहुत आराम से सोच-विचार करेंगे।
कई राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी शंका जता रहे हैं कि मौर्य अभी उलझन में हैं. वे आवेश में मायावती को छोड़ तो आये, उसके बाद उनका ठिकाना कहां होगा, कैसा होगा, इसपर वे भीतर से असमंजस महसूस कर रहे हैं.
भाजपा खेमे से उनके लिए आवाजें उठ सकती हैं। कांग्रेस खेल अपने चश्मे से देख रही है। मौर्य दोनों में से किसका साथ देते हैं, या अपने दिल की सुनकर अपनी पार्टी का ऐलान करते हैं, यह पता लगने में ज्यादा समय भी नहीं है।
-पाॅलिटिक्स ब्यूरो.
स्वामी दिल की सुनेंगे या कुछ ओर?
Reviewed by Gajraula Times
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June 25, 2016
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