राहुल गांधी और सियासी बातें

राहुल की ताजपोशी
राहुल गांधी को कांग्रेस नकार नहीं सकती और सोनिया गांधी का बेटा नकारा जाना भी नहीं चाहिए। इस पुत्र को अपने बूते कितनी कामयाबी मिली है, यह सब जानते हैं। भविष्य में क्या होने वाला है, इसके कयास ही लगाये जा सकते हैं। यह राजनीतिक रण है, यहां अकसर बाजियां पलट जाती हैं। जिन्हें आप 'लंगड़ा घोड़ा' कहकर खिल्ली उड़ाते हैं, वे प्रायः विजेता बनकर सेहरा सजाये आपको चिढ़ाते फिरते हैं। लेकिन राहुल गांधी की बात थोड़ी अलग है। उनकी राजनीतिक क्षमता पर कांग्रेस में शायद आधे से ज्यादा लोग सौ प्रतिशत भरोसा कर सकते हैं। आधे से कम उतना भरोसा नहीं करते। मन में चाहें आप जीरो प्रतिशत की बात करें, लेकिन मुुंह पर प्रतिशत अच्छा रह सकता है। यह पार्टी की बात है और राहुल गांधी तो कांग्रेस के युवराज हैं।  

यह गलत नहीं कि कांग्रेस को नुकसान हुआ है, मगर यह गलत है कि कांग्रेस का बेड़ा गर्क हुआ है. अब कल कोई यह कहने लग जाये कि दिल्ली और बिहार हारने के बाद भाजपा डूब गयी. ऐसा बिल्कुल गलत होगा क्योंकि उसके बाद भाजपा ने असम में शानदार जीत दर्ज की है.

कांग्रेस की हालत को जिस तरह पिछले दिनों मीडिया में पेश किया गया और बड़े-बड़े दिग्गजों ने लेखन की टांग तोड़ने में कसर नहीं छोड़ी, उससे लगा कि वाकई कांग्रेस तो गयी। अब उसकी सांस की नली पर पैर रखा जाने वाला है। मगर जब हकीकत देखी तो बात कुछ ओर निकली। पांच राज्यों में कांग्रेस को अपेक्षा के मुताबिक परिणाम नहीं मिले। असम में भाजपा ने एतिहासिक जीत दर्ज की। दूसरे राज्य जहां भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, वहां भी कहा गया कि कांग्रेस बदहाल है। जबकि कांग्रेस तो लगभग हर राज्य में भाजपा से कई गुनी सीटों पर आगे थी। बंगाल में भाजपा और कांग्रेस में फर्क आसनी से समझा जा सकता है। यह गलत नहीं कि कांग्रेस को नुकसान हुआ है, मगर यह गलत है कि कांग्रेस का बेड़ा गर्क हुआ है। अब कल कोई यह कहने लग जाये कि दिल्ली और बिहार हारने के बाद भाजपा डूब गयी। ऐसा बिल्कुल गलत होगा क्योंकि उसके बाद भाजपा ने असम में शानदार जीत दर्ज की है।

दांव तो हर तरह का खेला जायेगा लेकिन उससे पहले संभावनायें जताई जायेंगी.

राहुल गांधी की ताजपोशी जल्द होने की चर्चा के बाद सियासी हलचलतें बढ़ी हैं। कुछ उनके अपने कह रहे हैं कि राहुल बाबा को अभी इंतजार करना चाहिए। सही समय अभी आया नहीं। जब समय आयेगा तो वे मुकुट पहनने के लायक हो सकते हैं। उनका कहना सही है क्योंकि जल्दबाजी राजनीति में खतरा मोल लेने के बराबर है। मगर दूसरा पहलू यह है कि राहुल तो अरसे से ताजपोशी के इंतजार में हैं। उनकी उम्र भी चालीस को पार कर गयी। मानें कि जब वे पचास के होंगे तभी परिपक्व होंगे ताजपोशी के लिए। सोनिया गांधी में जिम्मेदारी संभालने और राजनीतिक समझ अधिक हो सकती है, मगर राहुल गांधी को सियासी जगत में बड़ी जिम्मेदारी का समय भी एक तरह से निकला जा रहा है। दांव तो हर तरह का खेला जायेगा। उससे पहले संभावनायें जताई जायेंगी। परिणाम आने पर असलियत पता लगेगी।

-पॉलिटिक्स ब्यूरो.
राहुल गांधी और सियासी बातें राहुल गांधी और सियासी बातें Reviewed by Gajraula Times on June 01, 2016 Rating: 5
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