नेताओं की फिदरत ही ऐसी होती है कि वे अपनी चमक को और चमकाना चाहते हैं। चाहत है कि मरती नहीं। कुर्सी का मोह है और उससे चिपकने की चाह। ऐसा जोड़ जिसकी मजबूती की दाद देनी चाहिये।
कुछ नेता राजनीति करने के लिये दूसरों को दांव पर लगाने में पीछे नहीं रहते। उन्हें शायद परिवार का मोह नहीं होता, अपने-पराये का ज्ञान शून्य होता है। कुछ खुद ही दांव पर लग जाते हां। पता नहीं उनमें ज्ञान होता है या नहीं।
आजकल नेता सीना फुलाकर घूमने की सोचते हैं. उसका सीना चौड़ा है, हम क्यों पीछे रहें. हम उससे ज्यादा इंची वाले हैं. देखना है तो आजमाले, नाप ले, हम किसी से कम नहीं. वह शेर हुआ तो हम बब्बर शेर हैं.
जब भाषण की बात आती तो कोई अपनी पीठ खुद थपथपाता घूमता है क्योंकि उसे बिना मतलब के प्रचार की गंदी आदत है। दूसरे कह देते हैं -“देखो बेचारा कितना भूखा था, अपनी ढपली, अपना राग कर रहा है।” ऐसे नेताओं को लोग जल्द समझ जाते हैं। इस बार भूल हो गयी अगली बार नहीं होगी। जबकि वह “भूखा” नेता फिर जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाने लगता है। बेचारी जनता फिर उसकी ठगी का शिकार हो जाती है। और अंत में कंगाली का गीदड़ हर तरफ रंभाता फिरता है। गीदड़ मारा-मारा फिर रहा है। उसे किसी ने पूछा नहीं, सिर्फ दुत्कारा है।
सीना फुलाये है कोई, किसी के पास सिवाय भाषणबाजी के कुछ नहीं, कोई जनता को सपने दिखा रहा है, तो किसी की मां उसका सहारा बन रही है।
लेकिन जो हो रहा है, राजनीति चल रही है. आम आदमी के पास खाने को रोटी नहीं और वह रो रहा है. नेताओं के जाल बन रहे हैं ताकि मौका मिलते ही भोली जनता को फांसा जा सके.
शिकार हो रहे हैं, अत्याचार के जख्म गहरे हैं। कुर्सी मिल गयी तो भूलना तय था। पांच साल उनके आराम से गुजर जायेंगे, लेकिन उनका क्या जिनके बल पर वे सत्ता सुख हासिल कर चुके।
यह है देश का चेहरा। यहां सीना चौड़ा कर घूमो, चिल्लाओ और इधर-इधर की गाओ और जनता को मूर्ख बनाओ।
-हरमिंदर सिंह.
कंगाली का गीदड़ रंभाता है
Reviewed by Gajraula Times
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June 14, 2016
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