हमदर्द की बेदर्दी से आहत अन्नदाता

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आजाद भारत की सभी सरकारें किसानों को खुशहाल और समृद्ध बनाने के नाम पर न जाने कितनी योजनायें बना चुकीं, लेकिन विकास की दौड़ में देश का यह बहुसंख्यक तबका दूसरे सभी तबकों से पिछड़ता ही गया। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे उन्होंने पिछली सभी सरकारों और नेताओं से दो कदम आगे बढ़कर किसानों को उनकी फसलों पर आई लागत का पचास फीसदी लाभ दिलाने का वायदा किया। इसी के साथ उन्होंने कीटनाशक, बीज, उर्वरक और कृषि यंत्र सस्ते उपलब्ध कराने के वायदे भी खुले मंचों से किये।

मोदी सरकार को बने दो वर्ष का समय बीत गया। इस दौरान किसानों को उनकी फसलों का न तो उचित दाम मिला, कृषि यंत्रों, उवर्रकों तथा कीटनाशकों के दाम घटने के बजाय बढ़ गये। प्याज उत्पादकों को मुफ्त में प्याज बेचनी पड़ रही है। हर समस्या का दोष राज्य सरकारों पर मंढने वाली केन्द्र की मोदी सरकार, जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं, वहां जाकर भाजपा अपना दोष उनके माथे मंढ रही है।

उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल है तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि राज्य में सपा और बसपा के कारण किसान-मजदूर परेशान हैं. जबकि महाराष्ट्र में तो भाजपा की ही सरकार है. वहां प्याज को बेचने को लेकर किसान मारे-मारे फिर रहे हैं

विदेशों से गत वर्ष पचास रुपयों तक प्याज मंगायी लेकिन किसानों को सरकार दस रुपये भी देने को तैयार नहीं। व्यापारियों के घर पहुंचते ही प्याज फिर महंगी कर दी जायेगी। भाजपा शासित महाराष्ट्र में ही किसानों ने सबसे अधिक आत्महत्यायें की हैं। उधर तरक्की की राह पर बढ़ रहे राज्य हरियाणा में भाजपा की सरकार के बाद कानून व्यवस्था और कारोबार का जो बुरा हाल हुआ है उसे सभी जानते हैं।

उत्तर प्रदेश का उद्धार करने को अब पीएम से लेकर गृहमंत्री तक सारे भाजपा के नेता झूठे-सच्चे वादे करने कूद पड़े हैं। तीस रुपये कट्टा मूल्य बढ़ाकर नीम कोटेड यूरिया केन्द्र सरकार द्वारा यहां दिया गया। जिससे किसानों को बेवकूफ बनाने का काम किया गया। किसानों के खेतों में या घरों में नीम और बकायन के पौधे हैं। वे उनके पत्तों और खली का प्रयोग करते रहते हैं। जबकि नीम कोटेड यूरिया में तो नाम मात्र का नीम है। उससे कोई भी लाभ नहीं होने वाला। हां, किसान से 50 किलो के कट्टे पर तीस रुपये उल्टे वसूले जा रहे हैं।

फसल बीमा योजना भी एक भ्रम जाल है. जो किसानी की लागत को बढ़ायेगा. पूरे नियम पढ़ने के बाद पता चलता है कि यह बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के अलावा कुछ नहीं

जिस प्रकार प्रधानमंत्री जनधन योजना के बहाने गरीबों की जेब में पड़ी पाई-पाई को सरकार ने बहला फुसलाकर निकलवा लिया, उसी तरह किसानों के नाम पर चलने वाली योजनायें भी किसानों की जेब खाली करने के अलावा कुछ नहीं। किसान अपनी उपज का लाभकारी मूल्य चाहता है, जिसे सरकार दिलाने में फेल सिद्ध हुई है और आज भी उसके पास उनके लिए कोई न तो कार्यक्रम है और न ही योजना। बस उत्तर प्रदेश में कुर्सी के लिए किसान याद आ रहे हैं। आजाद भारत का किसान लगातार बर्बादी की ओर है। पिछली सभी सरकारों की तरह मोदी सरकार से भी उसकी उम्मीद टूट गयी।

-जी.एस. चाहल.

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हमदर्द की बेदर्दी से आहत अन्नदाता हमदर्द की बेदर्दी से आहत अन्नदाता Reviewed by Gajraula Times on June 19, 2016 Rating: 5
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