राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. अजीत सिंह, चुनावी रणनीति बनाने में देर से जागते हैं और सही दिशा में चलने के बजाय लक्ष्य से भटक जाते हैं। यही कारण है कि वे अपनी राजनैतिक जड़ों से कटते जा रहे हैं। वे इस बार और भी बड़े भटकाव में फंसते नजर आ रहे हैं। जिस समाजवादी पार्टी से गठबंधन के लिए वे तैयारी कर रहे हैं उससे उन्हें लाभ के बजाय भारी नुकसान होगा। इसके बाद रालोद मजबूत होने के बजाय और भी कमजोर हो जायेगा।
कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तथा कभी सपा से गठबंधन करने से अजीत सिंह को कई बार सत्ता सुख जरुर मिला लेकिन इससे जिस किसान वर्ग में वे नेता माने जाते थे, उस वर्ग के मतदाता धीरे-धीरे उनसे किनारा करते गये और आज स्थिति यह हो गयी कि उनकी बिरादरी के वोट बैंक में भी सेंध लग गयी. यही कारण रहा कि चौधरी और उनका बेटा अपने लोगों के बीच भी अपनी कुर्सी न बचा सके
चौ. चरण सिंह के बाद उत्तर प्रदेश के किसानों और पिछड़ा वर्ग की आशायें उनके वैज्ञानिक बेटे अजीत सिंह पर थीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह वर्ग उनका साथ भी देता रहा। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती की जातीय राजनीति ने यहां वर्ग विभाजन का काम कर एक तरह की नयी राजनीति को जन्म दिया। इससे यहां दशकों से कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल का वर्चस्व समाप्त हो गया। उधर भाजपा के मंदिर आंदोलन ने भी यहां विकास के बजाय साम्प्रदायिक राह पर चलने वाली राजनीति को जन्म दिया।
चरण सिंह के उत्तराधिकारी को इन सबसे हटकर गांव, गरीब और किसान की राजनीति को कायम रखना चाहिए था। चाहें उन्हें विपक्ष में लंबा समय क्यों न गुजारना पड़ता। भाजपा से गठबंधन के समय चौधरी से उनके मुस्लिम मतदाता नाराज हो गये। अब वे सपा से संबंध करने जा रहे हैं। जबकि भाजपा और सपा दोनों ही एक-एक वर्ग विशेष की पार्टियां मानी जा रही हैं। सपा में जाने से उनके वे बहुसंख्यक वर्ग के लोग भी नाराज हो जायेंगे जो अभी भी उनके साथ हैं। ऐसे में वे दोनों ओर से जायेंगे। उन्हें समझ लेना चाहिए कि भाजपा के पास यहां जीतने के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से बढ़िया कोई हथियार नहीं। कैराना से उसकी शुरुआत हो चुकी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहकर इसकी पुष्टि भी कर दी कि कैराना को भुलाया नहीं जा सकता। कई अन्य शहरों और कस्बों से भी पलायन करने वाले लोगों की पड़ताल की जा रही है। ऐसे में सपा के साथ अजीत सिंह चले गये तो उनके बचे रहे समर्थकों में से भी अधिकांश उनका साथ छोड़ भागें तो आश्चर्य की बात नहीं।
-जी.एस. चाहल.
रालोद के ताबूत की तैयारी
Reviewed by Gajraula Times
on
June 19, 2016
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